Mangala Aarti: 5:00 – 6:30 AM
Dhoop Shringar Aarti: 8:00 – 8:30 AM
Shringar Aarti: 8:30 – 9:30 AM
Rajbhog Aarti: 12:30 – 1:30 PM
Hoisting Aulai :- 5:00 – 5:30 PM
Dhoop Sandhya Aarti :- 5:30 – 6:30 PM
Evening Aarti :- 7:00 – 8:00 PM
Shayan Aarti :- 9:00 – 9:30 PM
Shri Radhavallabh Temple is exactly located in Vrindavan District Mathura, State Uttar Pradesh and Country India. It is situated near Bankey Bihari Temple. “Shri Radha Vallabh Darshan Durlabh” The darshan of Shri Radha Vallabh is very difficult. This saying itself is enough to give the knowledge of the service of Shri Radha Vallabh Ji. Hit Harivansh Ji was born in a village, at the instructions of Shri Radha Rani, he left for Vrindavan. He was the incarnation of Lord Krishna’s Flute.
When he reached Charthawal Village, Shri Ji instructed him again that in the village one Brahmin will give him two daughters and you should marry them as per the customs. Shri Shri Radha Rani alone was his guru. When he was only 6 years only, the Shlokas of Shri Radha Sudhanidhi appeared from his mouth continuously.
Radha Vallabh History: Ancestor of Atmadeva Brahman had performed penance at mount Kailasha worshipping Lord Shiva. Lord Shiva became pleased and insisted too much upon ancestor of that Atmadeva Brahman to be blessed with his desired wish. Then he asked for the most cherished thing of Lord Shiva.
Then Lord Shiva gave him the deity of Shri RadhaVallabh Ji Maharaj from his heart and told him the method of its service. Shri Hit Harivansh Mahaprabhu carried this Deity, which on his arrival at Vrindavan was set up at ‘Oonchi Thaur’ (High Cliff) (Madanter) on the bank of the Yamuna. On the thirteen day of bright fortnight of the month of Karthika (oct-nov), Shri Harivansh Ji Maharaj celebrated the festival of the beginning of the service of Shri Radha Vallabh Ji. Shri Radha Vallabh Ji initially used to be virajman in Madan Teira, then he moved to Sewa Kunj. Afterwards when this temple is constructed, he became virajman here ever since. There is no deity of Shri Radhika with Shri Radha Vallabha, but there is a crown on the altar instead, which is worshipped as Radhika. Also Its considered Radha and Krishna together in Radha Vallabh Deity. Bent Form, Eyes filled with intoxication, naughty smile, beautiful form, everything attracts the mind forcibly. When Shri Krishna plays Murali, it attracts all the Gopis, Similarly It is only within the power of Shri Harivansh Ji being the Murali avtar, to make the Raas filled depiction of the union and the separation.
https://www.traditionrolex.com/33
श्री राधावल्लभ मंदिर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में वृन्दावन में स्थित है। यह बांके बिहारी मंदिर के पास है। “श्री राधावल्लभ दर्शन दुर्लभं” श्री राधावल्लभ के दर्शन बहुत दुर्लभ हैं। यह कहावत श्री राधावल्लभ मंदिर के बारे में बताने के लिए पर्याप्त है। श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी का जन्म एक गाँव में हुआ था । श्री राधा के दिए हुए निर्देशों के अनुसार उन्होंने श्रीधाम वृन्दावन के लिए प्रस्थान किया । वह भगवान श्री कृष्ण के बांसुरी के अवतार माने जाते हैं।
जब वह चार्तवाल गाँव पहुंचे, श्री जी ने उन्हें फिर से निर्देश दिया कि गाँव में एक ब्राह्मण की दो बेटियां है और आपको उनसे शास्त्रीय विधि के अनुसार विवाह करनी चाहिए। श्री राधा रानी ही केवल उनकी गुरु थीं । जब वे केवल छ: मास के थे, तो उनके मुख से श्री राधा सुधानिधि के श्लोक निरंतर प्रकट होते रहे अर्थात कम आयु में ही वे श्री राधा रानी के गीत गाया करते थे।
श्री राधावल्लभ इतिहास: आत्मदेव ब्राह्मण के पूर्वजों ने कैलाश पर्वत पर भगवान् शिव के लिए तपस्या की थी । भगवान शिव प्रसन्न हुए और अपनी इच्छा का आशीष पाने के लिए कहा । उन आत्मदेव ब्राह्मण के पूर्वजों पर बहुत अधिक जोर दिया अथार्त भगवान शिव से उन्हें अपनी इच्छा अनुसार वर मांगने के लिए कहा। जिसपर उन्होंने भगवान शिव की सबसे प्रिय वास्तु के लिए पूछा (उन्होंने भगवान शिव से पूछा की किस कार्य को करने में आपको अति रस की प्राप्ति होती है।
तब भगवान शिव ने उन्हें अपने हृदय से श्री राधावल्लभ जी महाराज की मूर्ति दी और उन्हें अपनी सेवा की विधि बताई। श्री हित हरिवंश महाप्रभु ने इस विधि को अपनाया, और वृन्दावन आने पर यमुना के तट पर ‘ऊँची ठौर’ (हाई क्लिफ) (मदन टेर) पर स्थापित किया था। कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने के शुकल पक्ष की तेरह तारीख को श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी महाराज ने श्री राधावल्लभ जी की सेवा की शुरुआत की और उत्सव मनाया। श्री राधावल्लभ जी शुरू में मदन टेर पर विराजमान थे, फिर वे सेवा कुंज में चले गए। बाद में जब इस नए मंदिर का निर्माण हुआ, तब से यहाँ विराजमान हो गए। श्री राधावल्लभ लाल के संग श्री राधा का श्रीविग्रह नहीं है। लेकिन इसके बजाय वेदी पर एक मुकुट विराजमान है। जिसे श्री राधिका की पूजा की जाती है। इसके अलावा श्री राधावल्लभ श्रीविग्रह में श्री राधा और श्री कृष्ण, दोनों का युगल स्वरुप ही माना जाता है। श्री विग्रह की त्रिभंग मुद्रा, चंचल अरूण नयन , मन्द-मन्द मुस्कान, सुंदर श्याम स्वरुप, हर अंग मन को आकर्षित करती है। जब श्री कृष्ण मुरली बजाते हैं तो सभी गोपीयों को आकर्षित करते हैं। इसी तरह मुरली के अवतार श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी के ही नियंत्रण में यह है, की युगल सरकार का मिलन कराएं और रस की निर्झरण हो ।
Radha Vallabh History: Ancestor of Atmadeva Brahman had performed penance at mount Kailasha worshipping Lord Shiva. Lord Shiva became pleased and insisted too much upon ancestor of that Atmadeva Brahman to be blessed with his desired wish. Then he asked for the most cherished thing of Lord Shiva.
Then Lord Shiva gave him the deity of Shri RadhaVallabh Ji Maharaj from his heart and told him the method of its service. Shri Hit Harivansh Mahaprabhu carried this Deity, which on his arrival at Vrindavan was set up at ‘Oonchi Thaur’ (High Cliff) (Madanter) on the bank of the Yamuna. On the thirteen day of bright fortnight of the month of Karthika (oct-nov), Shri Harivansh Ji Maharaj celebrated the festival of the beginning of the service of Shri Radha Vallabh Ji. Shri Radha Vallabh Ji initially used to be virajman in Madan Teira, then he moved to Sewa Kunj. Afterwards when this temple is constructed, he became virajman here ever since. There is no deity of Shri Radhika with Shri Radha Vallabha, but there is a crown on the altar instead, which is worshipped as Radhika. Also Its considered Radha and Krishna together in Radha Vallabh Deity. Bent Form, Eyes filled with intoxication, naughty smile, beautiful form, everything attracts the mind forcibly. When Shri Krishna plays Murali, it attracts all the Gopis, Similarly It is only within the power of Shri Harivansh Ji being the Murali avtar, to make the Raas filled depiction of the union and the separation.
राधावल्लभ इतिहास: आत्मदेव ब्राह्मण के पूर्वज ने भगवान शिव की पूजा करते हुए कैलाश पर्वत पर तपस्या की थी। भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने उस आत्मदेव ब्राह्मण के पूर्वज से उनकी इच्छित इच्छा पूरी करने के लिए बहुत आग्रह किया। तब उसने भगवान शिव की सबसे प्रिय वस्तु माँगी।
तब भगवान शिव ने उन्हें अपने हृदय से श्री राधावल्लभ जी महाराज का विग्रह दिया और उसकी सेवा की विधि बताई। श्री हित हरिवंश महाप्रभु ने इस विग्रह को धारण किया, जिसे उनके वृन्दावन आगमन पर यमुना के तट पर 'ऊँची ठौर' (ऊँची चट्टान) (मदन्तेर) में स्थापित किया गया। कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) के शुक्ल पक्ष के तेरहवें दिन, श्री हरिवंश जी महाराज ने श्री राधा वल्लभ जी की सेवा की शुरुआत का उत्सव मनाया। श्री राधावल्लभ जी प्रारंभ में मदन तीरा में विराजमान थे, फिर वे सेवा कुंज में चले गये। बाद में जब इस मंदिर का निर्माण हुआ तब से वह यहीं विराजमान हो गये। श्री राधावल्लभ के साथ श्रीराधिका का कोई विग्रह नहीं है, बल्कि वेदी पर एक मुकुट है, जिसे राधिका के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा राधा और कृष्ण को राधावल्लभ देवता में एक साथ माना जाता है। झुका हुआ रूप, नशे से भरी आंखें, शरारती मुस्कान, सुंदर रूप, सब कुछ मन को जबरदस्ती आकर्षित करता है। जब श्री कृष्ण मुरली बजाते हैं, तो वह सभी गोपियों को आकर्षित करती है, उसी प्रकार मिलन और विरह का रास पूर्ण चित्रण करना मुरली अवतार श्री हरिवंश जी के ही वश की बात है।
ग्रीष्मकाल
मंगला आरती प्रातः काल : 05:00 प्रातः
प्रातः काल : 05:00 प्रातः से 12:15 दोपहर
संध्याकाल : 06:00 दोपहर से 09:00 रात्रि
शीतकाल
मंगला आरती प्रातः काल : 05:30 प्रातः
प्रातः काल : 05:30 प्रातः से 12:15 दोपहर
संध्याकाल आरती : 06:00 दोपहर से 09:00 रात्रि
Vrindavan is considered a significant place for spiritual seekers, offering them an opportunity to connect with the divine and experience the devotion and love associated with Lord Krishna and Radha.