Morning: 04:30 am to 12:15 pm
Evening: 05:30 pm to 09:15 pm
the Radha Govind Temple of Vrindavan is a magnificent epitome of architectural splendor and devotion. This ancient temple was built beautifully and constructed with full devotion towards the Lord Radha Govind Ji and is a perfect treat for one’s eyes. The spiritual ambience of the temple lets you feel the omnipresent supreme power instantly. Govind Dev Temple of Vrindavan is known for its amazingly constructed building. This impressive building was constructed by Raja Man Singh of Amer in 1590 at the cost of 10 million rupees. At that time it was seven storey’s temple and was constructed with the combination of Hindu, Western and Muslim architectural patterns.
This well-planned constructed building of Govind Dev Temple was plundered by Aurangzeb in 1670 and left it with only three storeyed building that we see even today. After the invasion of Aurangzeb, the ancient idol of the temple was shifted to Govind Dev temple in Jaipur. Radha Govind Temple, Vrindavan is a treat to watch for pilgrims and one has to climb few stairs as it is situated on raised plinth.
Govind Dev Temple of Vrindavan has impressed pilgrims with its mesmerizing architecture and being an ancient temple with modern design this temple stands out of other temples of that time. This majestically well constructed temple is a perfect place for devotion and every pilgrim visiting the temple gets the glimpse of magical Lord Krishna with thorough tranquility.
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Thousands of pilgrims visit this temple. Govind Dev Ji Temple is of utmost importance for Vaishnavas of Vrindavan. One cannot afford to miss such an amazing ancient beauty. We at Brijwale help you to visit all such important places of Vrindavan as we are aware that this pious sight of Govind Dev Mandir will definitely take you towards salvation.
यह एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसे श्री रूप गोस्वामी जी ने प्रकाशित किया है। श्री गोविंद देव जी श्री रूप गोस्वामी जी को जमीन के नीचे मिले थे जहां इस समय यह मंदिर स्थापित है। श्री गोविंद देव जी की स्थापना श्री वज्रनाभ जी ने 5000 साल पहले (एक जगह जो गोविंद पीठ के नाम से विख्यात है) की थी।
श्री रूप गोस्वामी सेवा कुंज में श्री राधा दामोदर मंदिर के पास एक कुटिया बनाकर भजन करते थे। श्री चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा अनुसार वह श्री गोविंदा जी को प्रकाशित कर उनकी स्थापना करना चाहते थे। वह प्रतिदिन परिक्रमा लगाते थे। एक दिन जब वह परिक्रमा लगा रहे थे तब वह श्री गोविंद देव जी के ध्यान में अत्यंत व्याकुल हो उठे। तब वह यमुना जी के किनारे एक वृक्ष के नीचे बैठ कर रोने लगे और व्याकुल होकर श्री गोविंद देव जी के दर्शन के लिए रुदन करने लगे । तभी एक ब्रजवासी लड़का जो उनके साथ परिक्रमा कर रहा था, वह उनके पास आया और उनसे पूछा कि आप रो क्यों रहे हैं। पहले तो रूप गोस्वामी जी ने कुछ नहीं कहा परंतु बाद में उन्होंने अपने हृदय में जो चल रहा था वह सब कुछ ब्रज वासी लड़के को बता दिया। उसी क्षण बृजवासी लड़का उन्हें गोमा टीले पर ले गया और वहां उन्होंने बोला कि यहां प्रतिदिन एक गाय दूध देने आती है, लगता है आपकी आकांक्षा और इच्छा यहां पूरी हो जाएगी। ऐसा बोलकर वह ब्रजवासी लड़का अंतर्ध्यान हो गया। उस ब्रज वासी लड़के की मधुर वाणी और रूप सौंदर्य देखकर श्री रूप गोस्वामी भाव में बेहोश हो गए। उनके होश आते ही उन्होंने आस पास के ब्रज वासियों को अपने पास बुलाया और जिस जगह पर उस बृजवासी लड़के ने उन्हें बताया था वहां उन्होंने खुदाई शुरू की। थोड़ी ही खुदाई करने पर उन्हें श्री गोविंद देव जी मिले जो अनंत कामदेव के सौंदर्य को भी हेय करने वाले थे। उन्होंने श्री गोविंद देव जी को नहलाया और समस्त बृजवासी एकत्रित हो गए।
श्री रूप गोस्वामी जी के आने से पहले श्री राधिका जी को जगन्नाथ पुरी धाम में चक्रबति जगह पर लक्ष्मी देवी के रूप में पूजा जाता था। श्री राधा जी ने महाराज प्रताप रुद्र के पिता को सपने में आकर आदेश दिया कि मैं लक्ष्मी नहीं राधा हूं। मैं श्री कृष्ण की प्रेमिका हूं। मैं श्री गोविंद देव जी के प्राकट्य की परीक्षा कर रही हूं। जब श्री गोविंद देव जी वृंदावन में प्रकट हो जाएं तब मुझे वृंदावन भेज देना।
उसके पश्चात जैसे ही पता लगा कि श्री गोविंद देव जी का प्राकट्य हो चुका है तो श्री जान्हवा ठकुरानी जी के संग उन्हें वृंदावन भेज दिया। उसके पश्चात मंदिर के सब गोस्वामी जी ने श्री राधा ठकुरानी को श्री गोविंद देव जी के बाईं ओर स्थापित कर दिया। तो इस तरह श्री राधा गोविंद देव जी का प्राकट्य हुआ।
The temple holds immense religious and spiritual significance, particularly for followers of the Gaudiya Vaishnavism tradition. It is considered one of the most important and sacred temples dedicated to Lord Krishna and Radha Rani.
The temple was established in 1590 by Raja Man Singh of Jaipur, based on the instructions of Sri Rupa Goswami, a prominent saint and follower of Lord Chaitanya Mahaprabhu. It has since been a center of devotion and worship for devotees from all around the world.
The temple showcases a stunning blend of Rajput and Mughal architectural styles. The complex features intricately carved walls, domes, and spires that are adorned with detailed sculptures depicting various episodes from the life of Lord Krishna.
श्री राधा गोविंद देव मंदिर भारत के वृन्दावन में एक प्रतिष्ठित मंदिर है, जो भगवान कृष्ण और राधा रानी को समर्पित है।
जयपुर के राजा मान सिंह द्वारा स्थापित और श्री रूपा गोस्वामी की दृष्टि से प्रभावित, मंदिर की वास्तुकला राजपूत और मुगल शैलियों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण दर्शाती है। इसकी भव्यता जटिल नक्काशी, गुंबदों और अलंकृत दीवारों से स्पष्ट है जो भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं का वर्णन करती हैं।
यह मंदिर उन भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक स्वर्ग के रूप में कार्य करता है जो दैनिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, अपनी हार्दिक प्रार्थनाएँ करते हैं और सुशोभित देवताओं की विस्मयकारी सुंदरता को देखते हैं।
मंदिर में मनाए जाने वाले जीवंत उत्सव, जिनमें जन्माष्टमी और होली भी शामिल हैं, भक्ति और आनंद के माहौल को और बढ़ाते हैं।
गोविन्द देव जी मंदिर आरती समय
मंगला आरती प्रातःकाल : 4 : 30 प्रातः से 5 : 45 प्रातः
धुप आरती प्रातःकाल : 8 : 15 संध्या से 9 : 30 संध्या
श्रृंगार आरती प्रातःकाल : 10 : 15 प्रातः से 11 : 00 प्रातः
राज भोग आरती प्रातःकाल : 11 : 45 दोपहर से 12 : 15 दोपहर
ग्वाल आरती प्रातःकाल : 5 : 30 संध्या से 6 : 00 संध्या
संध्याकाल : 6 : 30 संध्या से 7 : 45 संध्या
श्यान आरती रात्रि : 8 : 15 रात्रि से 9 : 15 रात्रि
Vrindavan is considered a significant place for spiritual seekers, offering them an opportunity to connect with the divine and experience the devotion and love associated with Lord Krishna and Radha.